एक पखवाड़ा : शिखर हैट्रिक :
राहत का शिखर..
खान अशु, भोपाल।
शोहरत, मकबूलियत, कामयाबी के जिस पायदान पर वे खड़े हैं, खुद किसी शिखर से कमतर ही कहा जा सकता है... आधी सदी मंच, मुशायरे, श्रोता के बीच गुजार चुके राहत की तरफ मप्र संस्कृति की नज़र पहुंचना, घर का जोगी जोगड़ा... जैसे हालात का नतीजा कहा जा सकता है! दुनिया जिसके शे'र-ओ-कलाम के लिए बावली हुए जाती है, उस राहत के लिए खुद उनके सूबे की नज़र-ए-इनायत देर आयद, दुरुस्त आयद की कहावत को दोहराती दिखाई देती है...!
सत्तर की उम्र और पचास साल की मंचीय जिंदगी में हज़ारों मौके आए, जब राहत ऐजाज़-ओ-सम्मान से रु-ब-रु हुए, लेकिन इस मौके को अहम-ओ-खास कहा जा सकता है, जब एक पखवाड़े के दरम्यान उनकी झोली कुछ खास खुशियों से लबरेज़ दिखाई दे रही है...!
3 नवम्बर का दिन साहित्य आज तक के मंच से राहत के हिस्से एक नई तहरीर दिखाई दी, उनकी पहली ऑटो बॉयोग्राफी मंज़र-ए-आम पर थी...! हज़ारों शेर-ओ-कलाम को समेटे दर्जनों किताबें उनके नसीब हैं, लेकिन इस चंद वरकों की पुस्तक ने राहत साहब का वह चेहरा लोगों के सामने रख दिया, जिससे कम लोग वाकिफ थे...! दिल्ली से चला कामयाबी का ये पखवाड़ा पांच दिन बाद 8 नवम्बर को झीलों की नगरी में आकर ठहरा, रवींद्र नाथ टैगोर यूनिवर्सिटी के विश्वरंग में अंतरराष्ट्रीय मुशायरे की राहत वे बने...! पखवाड़े के पूरा होते-होते 18 नवम्बर की शाम इंदौर के राहत उर्दू साहित्य के शिखर पर दिखाई देंगे। तीन बरस से रुके इस सम्मान का बंटवारा हो चुका है, प्रदेश भर के कई लेखक, साहित्यकार, नाटककार इस प्रोग्राम में शिखर पर दिखाई देने वाले हैं।
सबकी राहत
राहत को करीब से जानने की चाहत रखने वालों के हाथ जल्दी ही एक नज़राना आने वाला है। सबकी राहत में उनके ब्रश से बात कहने के दौर से लेकर अल्फ़ाज़ से ख्याल जाहिर करने तक के ज़माने के कई किस्से शामिल हैं।
तहज़ीब
अदब की तहज़ीब, जुबां की तहज़ीब, साहित्य की तहज़ीब और यहां तक की सियासत की भी एक तहज़ीब। दुनिया के जितने रंग, उतने ही रंगों में बिखरी हुई तहज़ीब। तहज़ीब के इन्हीं अलग-अलग रंगों को सीनियर सहाफी डॉ मेहताब आलम ने अपने नज़रिए से देखा है। तहज़ीब के इन तमाम रंगों को समेटे हुए उनका एक मजमुआ जल्दी ही मंज़र-ए-आम पर होगा, अपने रंगों से सराबोर के लिए दस्तयाब होगा। तहज़ीब के ये मुख्तलिफ रंग उर्दू और हिंदी ज़ुबान में अपना असर दिखाएंगे।
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