चले गए गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ने वाले
अब्दुल जब्बार खान
खान आशु, भोपाल
दुनिया के सबसे बड़े और भीषण हादसे का गवाह बना शहर भोपाल और इसकी छाती पर पैदा हो गए लाखों गैस पीडि़तों के हक की लड़ाई लडऩे वाले अब्दुल जब्बार खान गुरुवार की रात अचानक खामोश हो गए। गैस पीडि़तों के मुनासिब और जरूरी इलाज के लिए सारी जिंदगी संघर्ष करने वाले जब्बार की मौत की वजह भी एक छोटी सी बीमारी बनी। जिन लाखों पीडि़तों को मुआवजा दिलाने के लिए उन्होंने तमाम ऐश-ओ-आराम, ईनाम-ओ-लालच को ठुकरा दिया, उनके आखिरी सफर में उस तादाद का एक अंश भी पहुंचा दिखाई नहीं दिया। आँखों में आंसू लिये मौजूद चन्द जब्बार चहेतों ने इस मौत को सरकारी बेईमानी का नतीजा करार दिया। उन्होंने गैस पीडि़तों के लिए चलाए गए जब्बार मिशन के जारी रहने का ऐलान किया है।
गुरुवार रात अब्दुल जब्बार खान के इंतक़ाल की खबर आने के बाद से सोशल मीडिया पर उनके लिए आंसू बहाने वालों का तांता लगा दिखाई दिया। सुबह के अखबारों ने भी उन्हें और उनके कामों को याद किया। जिक्र इस बात का भी हुआ कि जिस शख्स ने अपनी जिंदगी गैस पीडि़तों के माकूल इलाज की जद्दोजहद में गुजार दी, उनकी छोटी सी बीमारी के इलाज के लिए न शहर गम्भीर हुआ और न ही सरकारों ने उनकी फिक्र ली। गैस संगठन के नाम पर करोड़ों रुपए बना लेने के आरोप लगाने वालों को जानकर हैरत होना चाहिए कि उनकी बीमारी की वजह पैरों में एक ढंग का जूता न होना बन गया। पैर में चुभती कंकरियों के ददज़् को वे अपनी मोहक मुस्कान में न जाने कब से छिपाते आ रहे थे, जो आगे चलकर गैंगरीन का रूप ले बैठी। मधुमेह की उनकी बीमारी ने इसमें आग में घी की तरह काम किया। पिछले तीन महीने से वे लगातार मुफलिसी और महरुमियत के इलाज के दौर से गुजर रहे थे। कमला नेहरू, भोपाल मेमोरियल से होते हुए चिरायु अस्पताल में उनका जिंदगी का सफर खत्म हो गया। मौत से ऐन एक दिन पहले जब्बार से मिलने पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने उनके बेहतर इलाज के लिए मुंबई या दिल्ली ले जाने का प्रस्ताव भी दिया, लेकिन ये कोशिश भी सरकारी इरादों की तरह ही साबित हुई।
शहर की दोगलाई
1984 में हुए गैस हादसे के बाद पीडि़तों के हक की आवाज उठाने के लिए सबसे पहले अब्दुल जब्बार ही आगे आए थे। उनकी कोशिश और सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई याचिका के नतीजे में ही करीब 5 लाख, 73 हज़ार, 272 लोगों के लिए मुआवजा तय हुआ था। बावजूद इसके उनके आखिरी सफर में गिनती के लोगों की मौजूदगी ने जाहिर कर दिया कि ये शहर और यहां के बाशिंदे सिर्फ उन जिंदा लोगों के पीछे ही चलते हैं, जिनसे उन्हें मफाद होता है और किसी फायदे की उम्मीद बनी रहती है।
वादा कर सीएम नहीं आए, मन्त्रियों ने दर्ज कराई आमद
शुक्रवार सुबह अब्दुल जब्बार के चांदबड़ स्थित कुटियानुमा घर पर सीएम कमलनाथ का इंतजार किया जा रहा था लेकिन वे नहीं पहुँचे। घर पर आंसू बहाती चंद महिलाएं और इक्का दुक्का पुरुषों के अलावा कोई नहीं था। उनकी नमाज़-ए-जनाजा अदा करने के लिए कपड़ा मील ग्राउंड तय किया गया था। जहां धीरे-धीरे लोगों का आना शुरू हुआ। इनमें जनसम्पर्क मंत्री पीसी शर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, विधायक विश्वास सारंग, पूर्व विधायक रमेशचंद्र शर्मा भी शामिल थे। नमाज-ए-जनाजा के बाद काफिला कब्रिस्तान की तरफ बढ़ा तो इसमें अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आरिफ अकील, विधायक आरिफ मसूद, पार्षद मोहम्मद सऊद, अली अब्बास उम्मीद, तुफैल सिद्दीकी आदि भी जुड़ते गए।
सरकारों की आंखों का कांटा हट गया
गैस पीडि़तों की लड़ाई में कभी दबाव, झुकाव, लालच और बेईमानी के आगे न झुकने वाले अब्दुल जब्बार सरकारों की आंखों की किरकिरी रहे हैं। इसी वजह से उनकी बीमारी को गम्भीरता से न लेते हुए उन्हें आसानी से मर जाने दिया गया। अब्दुल जब्बार खान के गैस पीडि़त संगठन से जुड़ी महिलाओं ने ये आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सरकारों ने उन्हें हमेशा उपेक्षित किया। यही वजह है कि करीब तीन महीने से बीमारी की हालत झेल रहे जब्बार के इलाज के लिए कोई एहतियाती और जरूरी कदम नहीं उठाया गया। मुंबई या दिल्ली ले जाने की बात कुछ समय पहले कही गई होती और उसपर अमल किया जाता तो जब्बार इस तरह नहीं चले जाते। महिलाओं ने आह्वान किया है कि सिर्फ जब्बार गए हैं, उनका मिशन बाकी है और महिलाएं हक की इस लड़ाई की मशाल को जलाए रखेंगी।
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