तालीम से तरक्की तक की बातों को समाएगी नई किताब
भोपाल
आमतौर पर पुलिस में शामिल लोगों की छवि गैर साहित्यिक और गैर सामाजिक मानी जाती है। महकमे में काम की पाबंदियों और मसरूफियत में वे इन कामों के लिए वक्त निकाल भी नहीं पाते हैं। लेकिन कामों की व्यस्तता से बाहर होने पर उनके अंदर छिपी सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियां भी बाहर आने लगती हैं। ऐसे में जो लेखन और सृजन होता है, वह उनके अनुभवों को सहेजे, समेटे और साथ लिए होता है। जो समाज को एक नई दिशा दिखाने के लिए कारगर कदम भी बन सकता है। ऐसी ही एक पुस्तक आईपीएस अब्दुर्रेमान ने लिखी है। डेनियल एंड डेप्रीवेशन नामक अंग्रेजी की इस पुस्तक का रस्म-ए-इजरा (विमोचन) शनिवार को राजधानी भोपाल में होगा।
अब्दुर्रेहमान द्वारा लिखित यह पुस्तक पिछलो बारह वर्षों में आई दो महत्वपूर्ण रिपोर्टों को सहेजे हुए है। इन रिपोर्टों में भारतीय मुस्लमानों और वंचित चेहरों के लिए कई बातें कही गई हैं, लेकिन इनको सही तरीके से अमलीजामा ही नहीं पहनाया गया है। इन रिपोर्टों में जनसंख्या, शिक्षा जैसे परिणाम संकेतकों के संबंध में वर्तमान परिस्थितियों को प्रस्तुत किया गया ह।ै इसमें अर्थव्यवस्था, गरीबी, बेरोजगारी, खपत स्तर, बैंक ऋण की उपलब्धता, बुनियादी ढाँचा और नागरिक सुविधाएँ और सरकारी रोजगार में प्रतिनिधित्व आदि की बात भी कही गई है। लेखक अब्दुर्रेमान ने समुदाय विशेष के खास मुद्दों जैसे कि उर्दू के उपयोग, मदरसा शिक्षा और वक्फ पर भी अपनी पुस्तक में चर्चा की है। उन्होंने इस पुस्तक में सच्चर समिति की नवंबर 2006 में आई रिपोर्ट का जिक्र भी किया है। साथ ही रंगनाथ मिश्रा आयोगों की रिपोर्ट पर भी विस्तृत प्रकाश डाला है।
लेखक के बारे में
अब्दुर रहमान, भारतीय पुलिस सेवा के एक सदस्य, महाराष्ट्र में विभिन्न पदों पर इक्कीस वर्षोंं से अधिक समय से काम कर रहे हैं। बिहार के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से बी.टेक डिग्री प्राप्त की। उनकी पहली किताब सच्चर की सिफारिशेन (सच्चर की सिफारिश) 2012 में व्यापक रूप से प्रशंसा की गई। वह वंचितों को हाशिए और सुरक्षित सामाजिक न्याय के परिप्रेक्ष्य से सामाजिक आर्थिक और शैक्षिक मुद्दों की एक श्रृंखला पर लिखते हैं और व्याख्यान देते हैं।
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