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एकाग्र श्रृंखला 'गमक'

 विविध कलानुशासनों की गतिविधियों का ऑनलाइन प्रदर्शन

भोपाल । मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग की विभिन्न अकादमियों द्वारा कोविड-19 महामारी के दृष्टिगत बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों पर एकाग्र श्रृंखला 'गमक' का ऑनलाइन प्रसारण सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर किया जा रहा है| श्रृंखला अंतर्गत आज सायं 07:00 बजे से जनजातीय लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा सुश्री शालिनी व्यास एवं साथी, भोपाल का 'मालवी गायन' एवं लक्ष्मीनारायण और साथी, हरदा के काठी लोक नृत्य की प्रस्तुति का प्रसारण विभाग के यूट्यूब चैनल- https://youtu.be/Vm9VmY_j_D0, https://youtu.be/y_ZZNa1qNvg और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/603973489726559/posts/2721895641267656/?sfnsn=wiwspwa पर लाइव प्रसारित किया गया| 

प्रथम प्रस्तुति में सुश्री शालिनी व्यास ने 'मालवी गायन' की शुरुआत गणेश वंदना- गौरी के लाल गणेश ने मनावां से की उसके पश्चात 'ऊंची पाल तलाव की हो म्हारा भैरु जी' माता का भजन- 'मैया आजो एक वार', वधावा गीत- पेलो वधावो घोड़ी ने झेल्यो', बन्ना गीत- 'सड़क पर केसर की क्यारी', मामेरा गीत- 'बीरा जी रमक-झमक से म्हारे यहाँ आजो जी' एवं बन्ना गीत- 'बनना जी थेतो जपुर जाजो जी' का गायन किया| 

प्रस्तुति में सह गायन में सुश्री मंगला उपाध्याय एवं सुश्री माधवी जोशी ने, ढोलक पर- श्री रघुवीर सिंह और हारमोनियम पर- श्री जितेन्द्र शर्मा ने संगत दी| 

सुश्री शालिनी व्यास विगत पच्चीस वर्षों से मालवी गायन करती आ रही हैं, आपने गायन की प्रारंभिक शिक्षा गुरु रामेश्वर दयाल जोशी से ग्रहण की तत्पश्चात उस्ताद अलाउद्दीन खाँ, सीहोर से संगीत की शिक्षा प्राप्त की| इलाहाबाद संगीत विश्वविद्यालय से 'प्रभाकर' एवं संगीत महाविद्यालय मथुरा से 'संगीत शिरोमणी' की उपाधि प्राप्त की| आप आकाशवाणी भोपाल से समय-समय पर मालवी एवं निमाड़ी लोकगीतों की प्रस्तुति देती आ रही हैं| वर्ष 2010 में सर्वेश्वरी संगीत महाविद्यालय, भोपाल से 'कला सम्मान' एवं वर्ष 2018 में अखिल भारतीय साहित्य परिषद, भोपाल से 'लोक भाषा सम्मान' प्राप्त है| 

दूसरी प्रस्तुति श्री लक्ष्मीनारायण मौर्य और साथियों द्वारा 'काठी लोकनृत्य' की हुई| काठी मध्यप्रदेश के निमाड़ अंचल का एक पारंपरिक लोकनृत्य- नाट्य है| काठी नृत्य देव उठनी एकादशी से प्रारंभ होता है और महाशिवरात्रि पर विश्राम होता है| इस दौरान काठी नर्तक गाँव-गाँव भ्रमण करते हैं और पारम्परिक गाथा गायन कर भेंट प्राप्त करते हैं। इस नृत्य में नर्तकों का श्रृंगार अनूठा होता है गले से लेकर पैरों तक पहना जाने वाला बागा या बाना जो लाल चोले का घेरेदार बना होता है। काठी नर्तक कमर में एक खास वाद्य यंत्र ढांक बांधते हैं जिसे मासिंग के डण्डे से बजाया जाता है।

प्रस्तुति में लक्ष्मीनारायण के साथ राजेश, केवलराम, दिनेश, सुरेश, कैलाश, नर्मदा प्रसाद, सोनू, राम चन्दर राधा किशन, अजय एवं अनिल ने नृत्य में सहभागिता की|  

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