प्रेस रिलीज़
विविध कलानुशासनों की गतिविधियों का ऑनलाइन प्रदर्शन
भोपाल । मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग की विभिन्न अकादमियों द्वारा कोविड-19 महामारी के दृष्टिगत बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों पर एकाग्र श्रृंखला 'गमक' का ऑनलाइन प्रसारण सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर किया जा रहा है| श्रृंखला अंतर्गत आज कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन द्वारा डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित, उज्जैन का कालिदास का समाज चित्रण विषय एकाग्र 'व्याख्यान' का प्रसारण किया गया|
अपने व्याख्यान में इतिहासकार व पुरातत्वविद् श्री भगवतीलाल राजपुरोहित, उज्जैन ने कहा कि महाकवि कालिदास भारत के एक अद्वितीय कवि रहे हैं। सारे जगत में विख्यात उनकी महत्ता सर्वज्ञात है। कालिदास की सात पुस्तकें आधुनिक विद्वानों की दृष्टि से सर्वमान्य हैं। दो महाकाव्य रघुवंशम् और कुमारसम्भव एक खण्डकाव्य मेघदूत और एक ऋतुकाव्य श्रृंगार ऋतुसंहारम्। तीन नाटक हैं मालविकाग्निमत्रम्, विक्रमोर्वशीयम् और अभिज्ञानशाकुन्तलम् । नाटकों में अभिज्ञानशाकुन्तलम् सबसे श्रेष्ठ माना जाता है और काव्यों में रघुवंशम् सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए रघुकार के नाम पर उनकी प्राचीन काम में प्रसिद्धि रही है। महाकवि कालिदास ने अपने साहित्य में विभिन्न प्रकार के अपने युग को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
श्री पुरोहित ने कहा कि कालिदास ने कथाओं के माध्यम से विवरणों के माध्यम से, ऋतुवर्णनों के माध्यम से, भारत दर्शन के माध्यम से इस दृष्टि से कालिदास का जो जीवन दर्शन है, जो समाज दर्शन है, वह बड़ा ही व्यापक और सर्वसमाहारी है। कालिदास ने अपने रघुवंशम् के आरंभ में जो विवरण दिया है उससे प्रतीत होता है जो इस देश की पौराणिक काल से परम्परा रही है। उस परम्परा को मानते हुए और समाज प्रस्तुत कर रहा है। तद्नुसार वह वर्णाश्रम व्यवस्था का पोषक रहा है। चार वर्ण यानी की समूचा समाज पूरा समाज आ जाता है और चार आश्रम यानी पूरा जीवन तात्पर्य यह कि पूरे समाज का जीवन एक व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने का और व्यवस्थित रूप से जीने का उसका निर्देश रहा है। तद्नुसार उसका कहना है कि कोई भी समाज हो चाहे लेकिन संस्कृत श्लोक यानी जीवन के आरंभ में विद्या का अध्ययन किया जाए। शिक्षा प्राप्त की जाए और आगे बढ़ो और आगे बढ़कर अपनी पीढ़ी के बाद आने वाली पीढी को यह भार सौंपकर बढ़ते चले जाओ। यह पद्धति रहती है और हमेशा रहेगी। यह हर समाज में रहती है और हर जगह रहती है। उस सामान्य पद्धति को जो सर्वमान्य पद्धति है। इसे कालिदास ने अपने साहित्य में प्रस्तुत किया है और ये जो कालिदास का समाज है एक तरह से आदर्श समाज है वो आदर्श इसलिए है कि वो सर्वमान्य है। हर समय के लिए है।
अध्यक्षीय उद्बोधन- डॉ. मोहन गुप्त ने बताया कि कवि जब काव्य रचना करता है तो उसमे तत्कालीन समाजव्यवस्था का दर्शन होता ही है। महाकवि कालिदास ने अपने तीनों नाटकों में समाज का सुन्दर चित्रण किया है। अभिज्ञानशाकुन्तल में विशेष रूप से सामाजिक संरचना वर्णित हुई है। कवि का धर्म है कि वह गुणों के साथ अवगुणों को भी अपने साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत करे। महाकवि ने तत्कालीन सामन्तवादी व्यवस्था का उल्लेख किया है। ये नायक की रक्षा करते हुए समाज वास्तविक स्थिति का संकेत करने में पीछे नहीं रहे हैं। चूंकि उस समय का समाज आदर्श समाज था. तथापि राजा और राजकर्मचारियों के स्वच्छन्द व्यवहार भी उस युग में थे। महाकवि कालिदास ने सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था का चित्र अपने साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत कर दिया है।
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